Vikas Divyakirti Court Case : विवादित टिप्पणी के बाद अब कानून की क्लास में फंसे विकास दिव्यकीर्ति, 22 जुलाई को कोर्ट में पेशी तय

IAS कोचिंग के चर्चित शिक्षक विकास दिव्यकीर्ति एक पुराने यूट्यूब वीडियो में न्यायपालिका पर की गई कथित टिप्पणी को लेकर कानूनी विवाद में फंस गए हैं। अजमेर कोर्ट ने उनके खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कर उन्हें 22 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है।

Archana
Highlights
  • IAS vs Judge" वीडियो में न्यायपालिका पर टिप्पणी को लेकर अजमेर कोर्ट ने लिया संज्ञान
  • वीडियो वायरल होने के बाद हटाया गया, लेकिन कोर्ट ने मंशा को बताया "दुर्भावनापूर्ण"
  • 22 जुलाई 2025 को विकास दिव्यकीर्ति को कोर्ट में पेश होना होगा — IT एक्ट और BNS की धाराएं लगीं

नई दिल्ली, 12 जुलाई। Vikas Divyakirti Court Case : IAS हो या जज – किसके पास ज्यादा ताकत है? यही सवाल था जिससे शुरू हुई एक क्लास, और अब वही क्लास कानूनी केस की केस-स्टडी बन गई है। देशभर के युवाओं के प्रेरणास्रोत और शिक्षकों के रोल मॉडल माने जाने वाले डॉ. विकास दिव्यकीर्ति अब एक विवाद में उलझ चुके हैं, जिसमें अजमेर की अदालत ने उन्हें कोर्ट में तलब किया है।

क्या है मामला?

यूट्यूब पर वायरल हुए एक वीडियो में विकास दिव्यकीर्ति ने IAS बनाम जज की शक्तियों की तुलना करते हुए कुछ ऐसी बातें कह दीं, जिन्हें न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला माना गया।

वीडियो अब डिलीट हो चुका है, लेकिन इससे पहले वह कई दर्शकों तक पहुंच चुका था। अजमेर के अधिवक्ता कमलेश मंडोलिया ने इसे लेकर मानहानि की शिकायत दर्ज (Vikas Divyakirti Court Case)कराई, जिस पर कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए केस दर्ज करने के आदेश दिए हैं।

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कोर्ट की सख्ती:

8 जुलाई 2025 को अजमेर के अतिरिक्त सिविल जज मनमोहन चंदेल की अदालत ने पाया कि वीडियो में की गई टिप्पणियाँ बीएनएस की धारा 356 और 353 के अंतर्गत दंडनीय हैं। अदालत ने माना कि दिव्यकीर्ति ने जानबूझकर लोकप्रियता के लिए न्यायपालिका का उपहास किया। अब उन्हें 22 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में हाजिर होना होगा।

दिव्यकीर्ति का बचाव:

दिव्यकीर्ति का कहना है कि वीडियो उनकी सहमति के बिना अपलोड किया गया और उनकी टिप्पणियां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत (Vikas Divyakirti Court Case)थीं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि वीडियो में किसी खास व्यक्ति या संस्था का नाम नहीं लिया गया।

हालांकि, अदालत ने यह कहते हुए उनका तर्क खारिज कर दिया कि एक शिक्षक और सार्वजनिक व्यक्ति होने के नाते उन्हें अपनी बातों के प्रभाव का ज्ञान होना चाहिए।

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शिक्षक की बात या न्याय का मज़ाक?( Vikas Divyakirti Court Case)

यह मामला अब सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि बोलने की आज़ादी बनाम संस्थानों की प्रतिष्ठा का भी मुद्दा बन गया है। क्या एक शिक्षक संविधान और संस्थागत गरिमा के बीच संतुलन बना सकता है, या फिर हर अभिव्यक्ति की भी कोई सीमा होती है?

 

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